Rezang La War – 1962 || रजांगला युद्ध-1962 || आहिर धाम मेमोरियल
भारत और चीन के बीच 18 नवंबर, 1962 को लद्दाख के चुशुल के बर्फ से ढके पहाड़ों पर युद्ध हुआ, जो आज भी दुनिया भर में सशस्त्र बलों के इतिहास के सबसे महानतम स्टैंडों में से एक माना जाता है। और भारत ने लद्दाख को बचा लिया।
1. रेजांगला का अर्थ
1. रेजांगला का अर्थ
रेजांगला ये दो शब्दों से बना हुआ हैं "रेजांग " और "ला "| रेजांग यानी के भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य के लद्दाख मैं जो चुसुल घाटी पड़ती हैं उसके दक्षिण - पूर्वीय पर्वत के पास का एक इलाका हैं | ये ईलाका तकरीबन 16000 फीट से भी ज्यादा ऊँचा और लगभग ढ़ाई किलोमीटर से भी ज्यादा लम्बा और डेढ किलोमीटर से भी ज्यादा चौड़ा हैं | जबकि ला ये एक तिब्बतीय भाषा का शब्द हैं जिनका अर्थ होता हैं पर्वतीय शृंखला |
2. रेजांगलाकी संक्षिप्तमें कहानी और उसमें अहीरो का योगदान
चुशुल - रेजांगला की घाटी में भारतीय सेनाने चीनी सेना से निपटने के लिए कुछ Plattuns (टुकड़िया-बटालियंस) तैनात की थी जिन में सी-13 कमाऊ बटालियन चार्ली कंपनी नामक एक टुकड़ी भी थी, जिस में कुल 120 जवान थें जिन में से 114 जवान अहीर जाति के थे, अहीर जिन्हे हम आहीर, यदुवंशी और यादव से भी जानतें हैं जो की राजस्थान के अरवल और हरियाणा के गुरगाउ, रेवाड़ी, नारनौल और महेन्द्रगढ़ जिल्ले के अहीरवास क्षेत्र के रहने वाले थे | जिनकी अगुआई मेजर सैतानसिंह कर रहे थे |
उसी दौरान 18th नवम्बर 1962 की सूबह होने से पेहले भारी बर्फ-बारी के बिच लगभग साढ़े तीन बजे के बाद अपार गोलाबारूद और तोपखानों के साथ लगभग 5000 से 6000 चीनी सैनिको की पिपल्स लिब्रेशन आर्मी ने रेजांगला चुशूल पर हमला कर दिया |
हालाकी इस हमले का अंदेशा पहले से ही था, जब की भारतीय जवानो की इस प्लाटून के पास बहुत ही सिमित मात्रा में गोलाबारूद और राइफलें थी | इस कारवाही का सामना करने के लिये मेजर सैतानसिंह ने भारतीय सेना से वायरलेस रेडियो से मदद की गुहार की, परंतु भारतीय सेना मदद करने मैं असमर्थ थी और साथ ही में उन्हें वापस लौट आनेका आदेश भी दिया गया | पर ये जवानो ने हार ना मानने की ठानी और हारे हुई लड़ाई को जितने के लीये कसम ली की आखरी आदमी, आखरी दौर और आखरी साँस तक लड़ेंगे पर हम पीछे नहीं हटेंगे |
ये लड़ाई केवल गोला बारूद और राइफल से ही नहीं लड़ी गयी थी, किन्तु छुरे-चाकू और पथ्थरों से भी लड़ी गयी थी | यहाँ तक की आखिर मैं हमारे जवानो ने हाथापाई की लड़ाई भी की थी |
भारत ये लड़ाई केवल भारतीय आर्मी के जवानो की बहादुरी और ईच्छाशक्ति से लड़ रहा था | क्योकि उस समय भारत के पास, आर्मी के जवानो को देने के लिए ऐसे कोई भी अत्याधुनिक हथियार या गोलाबारूद नहीं थे जो चीनी सैनिको के हमले का सामना कर सके | यहाँ तक की हमारी बंदु के भी चीनी राइफलों का सामना कर ने में असमर्थ थी और तो और हमारे जवानो के पास ऐसे कपडे भी नहीं थे जो लदाख की ठिठुरती और जम देने वाली ठंड में जवानो को राहत पंहुचा सके |
भारत ये लड़ाई केवल भारतीय आर्मी के जवानो की बहादुरी और ईच्छाशक्ति से लड़ रहा था | क्योकि उस समय भारत के पास, आर्मी के जवानो को देने के लिए ऐसे कोई भी अत्याधुनिक हथियार या गोलाबारूद नहीं थे जो चीनी सैनिको के हमले का सामना कर सके | यहाँ तक की हमारी बंदु के भी चीनी राइफलों का सामना कर ने में असमर्थ थी और तो और हमारे जवानो के पास ऐसे कपडे भी नहीं थे जो लदाख की ठिठुरती और जम देने वाली ठंड में जवानो को राहत पंहुचा सके |
ये उन जवानो की बहादुरी और अदम्य साहस ही था जिन्हो ने लदाख को बचाने के लिये चीनी सैनिको से आखरी साँस तक यहाँ तक की बिना हथियारो से लड़ते हुए अपनी जान माँ भारती के लिये न्यौच्छावर कर दी और उन्ही की बदौलत आज लदाख भारत के कब्जे में हैं |
3. लड़ाई का कारण - महत्व
आज़ादी के बाद से ही भारत और चीन के बिच सिमा विवाद रहा हैं | जिस मैं जम्मू-कश्मीर के अक्शाई-चीन इलाका और पूर्वोत्तर का नेफ़ा में जो अब अरुणाचल का हिस्सा हैं | यही विवाद के कारण सन 1962 के 20 अक्टुम्बर को चीन ने भारत पर पहली बार हमला करते हुए चीनी आर्मी भारतीय सीमा में दाखिल हो गई और उस कारवाही मैं चीन, भारतीय फौज पर पूरी तरह से हावी रहा था |जबकी चुसूल के रजांगला घाटी में भारतीय सेना का पूरी तरह से नियंत्रण था और चुसूल तक पहुचने के लिए चीन की नज़र रेजांगला पर टीकी हुए थी जो की चुसूल से केवल 30 किलोमीटर की दुरी पर था | ये इलाका कुछ इस तरह ऊंचाई पर मौजूद हैं की जहा से आसपास के सारे इलाकों पर नज़र राखी जा सकती हैं और चीन ये बात भलीभाति जनता था | इसीलिए ही चीन इस इलाके को हड़पने की फ़िराक में था ता की इस इलाके पर नियंत्रण पाने का सीधा मतलब हैं की इस इलाके और उसके आसपास के इलाकों में अपना दबदबा कायम करना |
हमारे एक-एक जवान ने औसतन दश-दश चीनी सैनीको का खात्मा किया था और कुल 1300 चीनी दुश्मनो को मोत की नींद सुला दिया था | पर अफ़सोस की बात हैं की इस लड़ाई में भारत के 120 जवानो मे से 114 जवान भी शहीद हुवे थे | जबकी पांच जवान गंभीर रूपसे घायल हुए थे जिन को चीनी सैनिको ने बंधक बना लिया था पर चमत्कारिक रूपसे भारतीय जवान वहा से किसी तरह से निकल ने मे कामियाब हुए थे | और बाकि का एक जावान जीन को लड़ाई के दौरान ही मेजर सैतानसिह ने यह लड़ाई का आँखों देखा हाल देशवासीओ को सुनाने के लिए वापस भेज दिया था | जिनका नाम हैं कैप्टेन रामचन्द्र यादव |
4. लड़ाई में जीवित बचे जवानो की जुबानी
कैप्टेन रामचन्द्र यादव वे कहते हैं की चीनी सैनिक बड़े ही क्रुर-निर्दय और आक्रामक थे, वे बारी-बारी से हमले करतें थे वे ये भी कहते हे की नायक रामसिंह जो की एक पहलवान थे उन्होंने अकेले ही कही चीनी सैनिको को मोत के घाट उतार दिया था | यहाँ तक की उन्होंने अपने दोनों हाथो मैं एक-एक चीनी सैनिक के सर को पकड़कर आपस में पटका कर वही मोत के घाट उतार दिया था वे तब तक लड़ते रहे जब तक चीनी सैनिको ने उनके सीर पर गोली न मर दी |
इसी लड़ाई के और एक जीवित गवाह 13-कमाऊ बटालियन के कैप्टेन सतपालसिंह यादव कहते हैं की भारतीय जवानो के पास गोला बारूद और गोलिया ख़तम हो जाने के बाद नंगे हाथो से भी लड़ाई की थी | यहाँ तक की भारतीय मृत और बहादुर जवान के हाथो मैं और पैरो में राइफलें बंधी हुए थी, जे से की मरने के बाद भी ड्यूटी कर रहे हो | और एक भारतीय जवान तो हेन्ड ग्रैनेड की पिन निकाल ने के बाद फेंक ही रहा था की उसकी मृत्यु हो गयी, और ठंड के कारन हेन्ड ग्रैनेड पर उसकी उंगलिया जम जाने से उंगलियों को काट कर ग्रैनेड को निकलना पड़ा था |
5. प्रसंशा और पुरस्कारों
1. तो मेजर सैतानसिंह को रेजांगला लड़ाई मैं आख़री साँस तक निर्भीक और बहादुरी से अपनी बटालियन की अगुआई करने के लिए मरणोपरांत परम वीर चक्र से नवाजा गया था |
2. जबकि 13 - कमाऊ बटालियन को 4 - सेना पदक, 5 - वीर चक्र और 114 महावीर चक्र साथ ही मैं कमांडिंग ऑफिसर ढिंगरा को अति विशिष्ट सेवा पदक से सन्मानित किया गया था |
3. यूनेस्को द्वारा प्रकाशित की गयी "सामूहिक बहादुरी की आठ कहानी " जिन में रेजांगला की लड़ाई भी शामिल हैं. यहाँ तक की चीन ने भी हमारे 120 बहादुर जवानो की प्रसंशा की थी |
सन - 1964 में आयी "हकीकत " फिल्म में इन्ही 120 वीर जवानो की कहानी बताने की कोशिश की थी | और इसी फिल्म का फ़ेमस गाना जो की स्वर्गीय कवि प्रदिप ने लिखा था जिस के बोल "कर चले हम फ़िदा " हैं |
6. युद्ध स्मारक
ये लड़ाई को हंमेशा के लिये याद रख ने के लिये चुसूल के लद्दाख में एक युद्ध स्मारक बनाया गया हैं जिन पर अंग्रेजी में लिखा हैं जिसका अनुवाद हिंदी मैं कुछ इस तरह हैं ;
इस से शानदार मौत और क्या हो सकती हैं,
की सबसे भयानक परिस्थितिओ का सामना करते हुवे,
इन्सान अपने पूर्वजो की अस्थिओं,
और अपने देवताओ के मंदिरो के लिये वीरगति पा ले |
और इन्ही 120 सैनिको के नाम पर हरियाणा राज्य के रेवाड़ी शहर में आये धारुहेरा चौक के पास " आहीर धाम मेमोरियल " और गुडगाउ में भी युद्ध स्मारक हैं जो की हमारे जवानो की बहादुरी और अदम्य सहस की सौर्य गाथा के प्रतिक हैं |
जय हिन्द || वंदे मातरम ||
जय हिन्द || वंदे मातरम ||
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