भारत और चीन के बीच 18 नवंबर, 1962 को लद्दाख के चुशुल के बर्फ से ढके पहाड़ों पर युद्ध हुआ, जो आज भी दुनिया भर में सशस्त्र बलों के इतिहास के सबसे
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आज़ादी के बाद से ही भारत और चीन के बिच सिमा विवाद रहा हैं | जिस मैं जम्मू-कश्मीर के अक्शाई-चीन इलाका और पूर्वोत्तर का नेफ़ा में जो अब अरुणाचल का हिस्सा हैं | यही विवाद के कारण सन 1962 के 20 अक्टुम्बर को चीन ने भारत पर पहली बार हमला करते हुए चीनी आर्मी भारतीय सीमा में दाखिल हो गई और उस कारवाही मैं चीन, भारतीय फौज पर पूरी तरह से हावी रहा था |जबकी चुसूल के रजांगला घाटी में भारतीय सेना का पूरी तरह से नियंत्रण था और चुसूल तक पहुचने के लिए चीन की नज़र रेजांगला पर टीकी हुए थी जो की चुसूल से केवल 30 किलोमीटर की दुरी पर था | ये इलाका कुछ इस तरह ऊंचाई पर मौजूद हैं की जहा से आसपास के सारे इलाकों पर नज़र राखी जा सकती हैं और चीन ये बात भलीभाति जनता था | इसीलिए ही चीन इस इलाके को हड़पने की फ़िराक में था ता की इस इलाके पर नियंत्रण पाने का सीधा मतलब हैं की इस इलाके और उसके आसपास के इलाकों में अपना दबदबा कायम करना |
हमारे एक-एक जवान ने औसतन दश-दश चीनी सैनीको का खात्मा किया था और कुल 1300 चीनी दुश्मनो को मोत की नींद सुला दिया था | पर अफ़सोस की बात हैं की इस लड़ाई में भारत के 120 जवानो मे से 114 जवान भी शहीद हुवे थे | जबकी पांच जवान गंभीर रूपसे घायल हुए थे जिन को चीनी सैनिको ने बंधक बना लिया था पर चमत्कारिक रूपसे भारतीय जवान वहा से किसी तरह से निकल ने मे कामियाब हुए थे | और बाकि का एक जावान जीन को लड़ाई के दौरान ही मेजर सैतानसिह ने यह लड़ाई का आँखों देखा हाल देशवासीओ को सुनाने के लिए वापस भेज दिया था | जिनका नाम हैं कैप्टेन रामचन्द्र यादव | महानतम स्टैंडों में से एक माना जाता है। और भारत ने लद्दाख को बचा लिया।
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